ढाडी वारां के जरिए जत्थे ने बताया गुरु इतिहास, गुरु जी ने दूसरों को धर्म नहीं छोडऩे दिया, तो आप कैसे टूट सकते हो : भूपेंद्र सिंह पारसमणी
चित चरण कमल का आसला, चित चरण कमल संग जोडि़ए
जमशेदपुर। साहिब-ए-कमाल श्री गुरु गोबिंद सिंह के पिता नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी जब ब्राह्मण धर्म खतरे में पड़ा तो फरियादियों की फरियाद लेकर खुद दिल्ली दरबार औरंगजेब के पास पहुंचते हैं। उस समय के कवि चंद भट औरंगजेब व गुरुजी की मुलाकात को कुछ यू बयां करते हैं। चित चरण कमल का आसरा। चित चरण कमल संग जोडि़ए. मन लोचे बुरियाइयां. गुर शब्दी एवें मन होडिय़े. तेग बहादुर बोलया। धर पइए, धर्म न छोडि़ए. बाहें जिनां दी पकडि़ए, सिर दीजे बांह ना छोडि़ए। ढाडी वारां के जरिए पंजाब के पंथ प्रसिद्ध विद्वान ढाडी जत्था भाई भूपेंद्र सिंह प्रीत पारसमणी अमृतसर वाले ने जमशेदपुर की संगत को सिखों के ऐतिहासिक शहीदी इतिहास को बयां कर संगत के रोंगटे खड़े कर दिए. मौका था साकची स्थित सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के बैनर तले शुरू हुए दो दिवसीय शहादत-ए-सफर कीर्तन समागम का। श्री गुरु तेग बहादुर मेमोरियल हॉल के सुसज्जित पंडाल में डेढ़ हजार संगत ने गुरु दरबार में हाजरियां भरी. गुरु के उपदेश के तहत हाजिरी लगाते हुए भाई भूपेंद्र सिंह ने संगत से अपील की, कि जब गुरु तेग बहादुर ने दूसरों को धर्म नहीं छोडऩे दिया तो फिर हम क्यों यत्र-तत्र घूम रहे हैं. हमें भी गुरु परमात्मा शबद गुरु श्री गुरुग्रंथ साहिब का साथ नहीं छोडऩा चाहिए. अर्थात उन्होंने संगत को गुरु घर से जुडऩे के लिए प्रेरित किया।
:: गुरु से जुड़ें, क्योंकि वह किसी का हाथ नहीं छोड़ते::
अपनी टीम ढाडी सुखदेव सिंह, विक्रमजीत सिंह, सारंगी मास्टर संदीप सिंह के साथ उन्होंने उन्होंने इतिहास बताया कि पहले राज दरबार लगा करते थे।।जब फरियादियों की फरियाद नहीं सुनी गई तो थक हार कर जंजू (ब्राह्मण) धर्म के लोग गुरु तेग बहादुर जी के पास पहुंचे। उन्हें फरियादियों ने बताया कि उन्हें इस्लाम कबूल करवाया जा रहा है। मंदिर तोड़े जा रहे हैं। तब फरियादियों की बांह (हाथ) पकडक़र गुरु जी दिल्ली पहुंचते हैं. बादशाह औरंगजेब उन्हें कहते हैं कि या तो इस्लाम धर्म कबूल लें, या कोई करामात दिए नहीं तो उनका हाथ छोड़ दें। तब हम सबको छोड़ देंगे। लेकिन गुरु जी नहीं माने. गुरु तेग बहादुर का शीश चांदनी चौक में कत्ल कर दिया गया। भाई जैता उनके शीश को लेकर आनंदपुर साहिब आएं। तब गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें रंगरेटे गुरु के बेटे से नवाजा। उन्होंने कहा कि सारे दरबार खत्म हो गए. गुरु का दरबार ही है जो किसी की बांह पकड़ ले तो नहीं छोड़ता. ये चौर, चंदोआ केवल जुगो जुग अटल श्री गुरुग्रंथ साहिब के पास है. इसलिए उनसे जुड़े रहना चाहिए. वह कभी आपको नहीं छोड़ेंगे.
शाम को भी उमड़ी संगत, आज भी सजेगा दरबार
शाम को भी सोदर रहिरास साहिब के पाठ बाद सिख शहीदों व गुरुओं के इतिहास से संगत रू-ब-रू हुई. कनकनी की ठंड में भी संगत गुरु के आगे नतमस्तक रही। दीवान में स्थानीय जत्थों ने भी संगत को समां बांधा और गुरवाणी कीर्तन व कथा विचार कर संगत को निहाल किया. दोनों वेला दीवान में संगत के बीच गुरु का अटूट लंगर भी वितरित किया गया. शुक्रवार दूसरे दिन भी दोनों वेला धार्मिक समागम सजेंगे। इसकी सफलता को लेकर प्रधान गुरमुख सिंह मुखे, तरसेम सिंह, जागीर सिंह, महेंद्र सिंह, दलजीत सिंह दल्ली, जसबीर सिंह पदरी, सुखविंदर सिंह, अजीत सिंह गंभीर, हरदयाल सिंह, मंजीत सिंह, अमरजीत सिंह, सरदूल सिंह, सतबीर सिंह गोल्डू, जितेंद्र सिंह, जगजीत सिंह जग्गी, दीपक सिंह गिल, बीबी सुखजीत कौर, रविंद्र कौर आदि सहयोग कर रहे हैं।