जो युवा अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे हैं, क्या वे यह समझते भी हैं कि यह योजना है क्या ?: लक्ष्मी सिन्हा
बिहार पटना सिटी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने संवाददाता से बातचीत में बताया कि अग्निवीर योजना को लेकर नाराजगी समझ आ सकती है, लेकिन यह समझ के परे हैं की आगजनी करने वाले खुद को फौज में जाने के योग्य कैसे मानते हैं? चर्चा कीजिए, विरोध कीजिए, लेकिन अगर आगजनी करेंगे तो आपका ही रिकॉर्ड खराब होगी और मौका मिला तो भी फौज में नहीं जा पाएंगे। मत भोले की फौज का मतलब अनुशासन है। सेना के तीनों अंगों में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना से असहमत_अप्रसन्न युवाओं ने देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह उत्पाद मचाया और इस दौरान पथराव एवं आगजनी के साथ हर तरह की अराजकता का परिचय दीया, वह न केबल आघातकारी है, बल्कि शर्मसार करने वाली भी। आखिर ऐसे अनुशासनहीन और अराजक युवा सेना में भर्ती होने के अधिकारी कैसे हो सकते हैं, जो अपना विरोध दर्ज कराने के नाम पर राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट करने का काम करें? श्रीमती सिन्हा ने कहा कि विरोध के नाम पर ट्रेनों को जलाना, रेलवे स्टेशनों पर तोड़फोड़ करना, सरकारी एवं निजी वाहनों को क्षतिग्रस्त करना गुंडागर्दी के अलावा और कुछ नहीं। इसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाना चाहिए। राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हिंसा में शामिल तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो। यह इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि अब विरोध के नाम पर हर किस्म की अराजकता का प्रदर्शन करना और उसके जरिए लोगों को खौफजदा करना आम होता जा रहा है। यदि अराजकता का सहारा लेकर शासन को उसके फैसले वापस लेने के लिए बाध्य करने की प्रवृत्ति पर प्रहार नहीं किया गया तो सरकारों के लिए काम करना तो मुश्किल होगा ही, बात बात पर कानून हाथ में लेने वाले अराजक तत्वों का दुस्साहस भी बढ़ेगा। नि: संदेह यह समझ आता है कि सेना में भर्ती होने के आकांक्षी कुछ युवाओं को अग्निपथ योजना के कुछ प्रविधान रास न आए हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे सड़कों पर उतर कर हिंसा करने लगे। दुर्भाग्य से बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल समेत कई राज्यों में ऐसा ही हुआ।। यह मानने के अच्छे_भले कारण है कि कुछ राजनीतिक दलों ने युवाओं को अग्निपथ योजना के खिलाफ उकसाया। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि यह देखना दयनीय है की सैनिक बनने के आकांक्षी जिन युवाओं को अनुशासन का परिचय देना चाहिए और अपना रोष_ आक्रोश मर्यादित तरीके से प्रकट करना चाहिए, वे सड़कों पर उपद्रव करते दिखाई दे रहे हैं। आखिर यह देश सेवा का कैसा जज्बा है, जिसमें न तो संयम दिखाई दे रही है और न ही अपनी आपत्तियों को सभ्य तरीके से प्रकट करने का सलीका? यह स्पष्ट है कि जो युवा अग्निपथ योजना के विरोध में सड़कों पर हिंसा करने के लिए उतरे, उन्होंने यह देखने_समझने से इनकार किया की सरकार किस तरह उनकी चिंताओं और सवालों का समाधान करने के लिए सक्रिय है। वैसे इस पूरे मामले में सरकार के लिए भी यह एक सबक है कि उसे अपनी किसी योजना को लागू करने से पहले पूरी तैयारी के साथ सामने आना चाहिए, ताकि किसी तरह के संशय के लिए कोई गुंजाइश न रहे। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि पुनः अग्निपथ योजना पर विचार करें तो यही लगता है कि उसमें चार साल की अवधि कम है, क्योंकि तीन से चार साल तो नौकरी के साथ समायोजन में बीत जाते हैं। बेहतर होता कि यह अवधि पांच से सात वर्षों की निर्धारित की जाए। साथी उनके लिए अर्धसैनिक बलों, राज्य पुलिस और सर्वजनिक उपक्रमों आदि में भर्ती की ठोस व्यवस्था प्राथमिकता के आधार पर की जाए। अग्निपथ एक बढिंया कदम है और यह माना जाना चाहिए की कमांडिंग अधिकारियों एवं सेना प्रमुखों के स्तर पर नियमित समीक्षा एवं उनके सुझावों से इसमें और निखार होगा। उत्कृष्ट नेतृत्व के सात अग्निपथ का प्रवर्तन सहज ही संभव होगा।