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सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस, झामुमो, राजद गठबंधन की ओर जनता टकटकी लगाए बैठी है

2019 की लोकसभा चुनाव के समय की परिस्थिति पर एक नजर खासकर सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की ओर देखते है तो सहज ही दिख जाएगा। 2019 की लोकसभा चुनाव में झारखंड से कांग्रेस को एक ही सीट पर जीत हासिल हुई थी

संतोष वर्मा

चाईबासा।जनता जनार्दन को पता है लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है।और जनता को यह भी पता है दिल्ली दरबार में बैठने वाले जनप्रतिनिधि को चुनना है। हालांकि इस चुनाव में राजनीतिक दल राष्ट्रीय मुद्दा पर अधिक फोकस करते है। और ऐसे भी नहीं है कि लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय मुद्दा बिल्कुल ही गायब रहता है। क्षेत्रीय मुद्दा भी लोकसभा चुनाव में प्रभाव डालती है। अलग अलग संसदीय क्षेत्र पर निर्भर करता है। उस संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं की जातीय समीकरण पर निर्भर करता है। जैसे 2019 की लोकसभा चुनाव के समय की परिस्थिति पर एक नजर खासकर सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की ओर देखते है तो सहज ही दिख जाएगा। 2019 की लोकसभा चुनाव में झारखंड से कांग्रेस को एक ही सीट पर जीत हासिल हुई थी। हां,सिंहभूम संसदीय सीट से कांग्रेस महागठबंधन को जीत मिली थी। सांसद गीता कोड़ा को कांग्रेस,झामुमो,राजद महागठबंधन के साझा उम्मीदवार के रूप में पसंद किया गया था। इसीलिए सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की जनता ने अपना बहुमूल्य वोट देकर गीता कोड़ा को दिल्ली दरबार में भेजा था। जबकि उस समय स्व:लक्ष्मण गिलुआ भाजपा सांसद के साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी थे। लेकिन भाजपा सांसद स्व:लक्ष्मण गिलुआ को कांग्रेस के साझा उम्मीदवार गीता कोड़ा ने लगभग 70 हजार के बड़े अंतर से हरा दी थी। इसके पीछे क्षेत्रीय मुद्दा ही कारण बना था । कयोंकि यह सीट आदिवासी सुरक्षित सीट है।आदिवासियों की बहुलता वाले संसदीय क्षेत्र है। झारखंड की उस समय के मुख्यमंत्री रघुवर दास के द्वारा सीएनटी,एसपीटी एक्ट में संशोधन विधेयक को मुद्दा बनाया गया था । जिसे उस समय के राज्यपाल ने उस विधेयक को वापस कर दिया था। रघुबर दास सरकार द्वारा तैयार की गई लैंड बैंक को मुद्दा बनाया गया था । साथ ही स्थानीय नीति को मुद्दा बनाया गया था । जिसके कारण भाजपा को सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के ग्रामीण जनता अस्वीकार कर दिया था । सांसद स्व: लक्ष्मण गिलुआ को करारी हार का सामना करना पड़ा था । जिस प्रकार सांसद गीता कोड़ा कांग्रेस गठबंधन से जीतने के बाद चुनाव के ठीक पहले पाला बदलते हुए भाजपा में शामिल हो गई । और भाजपा ने उसे उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। ठीक उसी प्रकार 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले 2018 के अक्टूबर महीने में गीता कोड़ा कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही जय भारत समानता पार्टी को भी कांग्रेस मे विलय कर लिया था। उस समय प.सिंहभूम जिला के कांग्रेस जिला अध्यक्ष सन्नी सिंकु थे । झारखंड के उस समय के मुख्यमंत्री रघुवर दास के द्वारा जब सीएनटी एसपीटी एक्ट की कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि में बदलने के लिए संशोधन विधेयक को विधानसभा में लाया गया था। उस विधेयक के विरोध में कांग्रेस ने प.सिंहभूम जिला के 18 प्रखंड में धरना प्रदर्शन करने के बाद संबंधित प्रखंड विकास पदाधिकारी के द्वारा राज्यपाल को मांग पत्र सौंपा गया था। उसी तरह से जब उस समय के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने गैर मजरूआ आम और ख़ास जमीन को अवैध जमाबंदी घोषित करते हुए रद्द कर दिया था। और उस सामुदायिक जमीन को लैंड बैंक में जमा कर दिया था । उस लैंड बैंक के विरोध में जिला कांग्रेस ने जिला के सभी बाजार हाट में नुक्कड़ सभा किया था। जिसका असर जनता पर पड़ा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साझा उम्मीदवार के रूप में गीता कोड़ा को जनता जनार्दन ने स्वीकार किया और वह निर्वाचित हुई । लेकिन अब जब कांग्रेस,झामुमो,राजद गठबंधन से जीत हासिल करने वाली गीता कोड़ा भाजपा में शामिल हो गई,और पार्टी ने उसे उम्मीदवार भी घोषित कर दिया तो ग्रामीण जनता उससे निराश है और नाराज भी। पर जनता के सामने अब तक बेहतर विकल्प नहीं होने के कारण जनता इंतजार में है। सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस, झामुमो, राजद गठबंधन की ओर जनता टकटकी लगाए बैठी है। जनता जनार्दन का धैर्य भी जवाब दे जा रहा है। महागठबंधन के कई समर्थकों से तो यह भी कहते सुनाई पड़ जाता है भाजपा से सीखना चाहिए महागठबंधन को। छह माह और एक वर्ष पहले जैसे झामुमो जिला कमिटी और विधायकों की ओर से प्रत्येक विधानसभा में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करके कार्यकर्ताओं का मनोबल बहाल कर रखा था। अब तक महागठबंधन के उम्मीदवार की घोषणा नहीं होने से पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं की असंतोष भी समाचार बनकर तैर रहा है। झामुमो के भीतर आपसी तकरार भी दिखाई देने लग रहा है। एक दूसरे पर बाहरी लोकसभा क्षेत्र के होने का टिका टिप्पणी तक होने लगी है। और वहीं लगभग झामुमो का उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना पर आधारित संलेख भी अखबारों में सुर्खियां बटोर रही है।और वहीं भाजपा ने सांसद गीता कोड़ा को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। और वह अपना प्रचार अभियान शुरू कर चुकी है। उनको जगह जगह जनता जनार्दन का जन समर्थन भी मिल रहा है।कहीं कहीं अंदर ही अंदर सांसद गीता कोड़ा के द्वारा पाला बदलने के कारण जनता जनार्दन नाराज भी है। रह रहकर कुछ जागरूक शिक्षित और संवेदनशील जनता यह भी कहते सुनाई दे जाते है भाजपा के डबल इंजन की सरकार में ही मणिपुर की घटना हुई। जहां पर आदिवासी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हुई थी,लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी एक बार भी मणिपुर नहीं गए। मध्यप्रदेश में एक आदिवासी युवक के मूंह पर पेशाब किया गया। उसी तरह से अब हसदेव अरण्य बचाने के लिए आदिवासी संघर्ष कर रहे है। लेकिन महागठबंधन की ओर से अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं होने से जनता के सामने विकल्प ही नहीं है। जानकारी के लिए सांसद गीता कोड़ा से नाराज होकर कांग्रेस का जिला अध्यक्ष पद त्याग करने वाले सन्नी सिंकु अपने सहयोगियों के साथ 01 मार्च को रांची के परिसदन में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी के साथ शिष्टाचार मुलाकात किया था। उस समय चर्चा हो रहा था कि अब सन्नी सिंकु कांग्रेस में वापस लौट सकते है।लेकिन महीना बीत गया सन्नी सिंकु के कांग्रेस में शामिल होने की कोई खबर नहीं है। जो हो सन्नी सिंकु कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रहते हुए या टीएमसी में रहते हुए या झारखंड पुनरूत्थान अभियान के मुख्य संयोजक के रूप में जन मुद्दा से सरोकार तो रखते है। टीएमसी में रहते हुए उन्होंने न सिर्फ बाजार हाट में किसानों के तीन काला कानून के विरोध में नुक्कड़ सभा करते रहा,बल्कि जिला में सैकड़ों ट्रैक्टर रैली निकालकर किसानों के आवाज बनते रहे । जब जिला में विकास गलियारा परियोजना की तैयारी बैठक प्रशासन और टाटा स्टील फाउंडेशन के साथ हुई, तो सन्नी सिंकु ने जमशेदपुर के खैरबानी गांव से ओडिसा के कालिंग नगर तक आदिवासी मूलवासियों को विस्थापित करने के विरोध में 300 किलोमीटर की पदयात्रा किया था। उसी तरह से एनएच के नाम पर बिना ग्रामसभा से लिखित सहमति लेकर जगन्नाथपुर और चाईबासा बायपास सड़क निर्माण करने के लिए जब नोटिफिकेशन हुआ तो आदिवासी मूलवासियों के खेती करने वाली जमीन पर ही पैदल चलकर उसका विरोध किया। साथ ही झारखंड सरकार के द्वारा बनाया गया निजी कंपनियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरी देने के लिए भी आंदोलन करते हुए दिखाई देते रहे । इस तरह से झारखंड पुनरूत्थान अभियान के मुख्य संयोजक सन्नी सिंकु हमेशा जन मुद्दा पर मुखर होकर सड़कों पर आवाज बुलंद करते हुए दिखाई देते है। जबकि सांसद गीता कोड़ा और मधु कोड़ा द्वारा कांग्रेस छोड़ने के बाद सन्नी सिंकु के लिए कांग्रेस पार्टी घर वापसी की तरह हो सकता है। लेकिन वर्तमान राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वंदिता और कूटनीति में सन्नी सिंकु कितना उपयुक्त है यह तो समय ही बताएगा। लेकिन सन्नी सिंकु का ईमानदारी छवि और जुझारू पहचान तो है। और पड़े लिखे झारखंड आंदोलनकारी भी है। जो हो पल पल में राजनीतिक समीकरण बनते बिगड़ते हुए दिखाई दे रहा है सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में। जब तक कांग्रेस ,झामुमो,राजद महागठबंधन की उम्मीदवार का घोषणा नहीं हो जाता है,तब तक लाख सांसद गीता कोड़ा के विरोध में लहर हो वही सब पर भारी है। और भाजपा ने बहुत सोच समझ कर सोशल इंजीनियरिंग का उपयोग करते हुए सांसद गीता कोड़ा को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग संपन्न मध्यप्रदेश, छातीसगढ़,राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भी खूब चला। इंडिया गठबंधन के साझा घोषणा पत्र भले ही सार्वजनिक नहीं हुआ हो,लेकिन कांग्रेस ने पांच न्याय और 25 गारंटी वाली घोषणापत्र तैयार कर लिया है। और भाजपा ने भी घोषणापत्र तैयार करने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को अध्यक्ष मनोनीत किया है।और दिल्ली रामलीला मैदान में संपन्न हुई लोकतंत्र बचाओ महारैली में केंद्र की भाजपा सरकार पर जिस प्रकार से महागठबंधन दल के नेतागण हमलावर थे। उस लोकतंत्र बचाओ रैली में कल्पना सोरेन,सुनीता केजरीवाल की दहाड़ भी नई राजनीतिक समीकरण को दिशा दिया है। साथ ही आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जमानत मिल जाना भी राजनीतिक समीकरण को बिगाड़ने वाले साबित होने वाला प्रतीत होता है। जिसके कारण इस बार का लोकसभा चुनाव कुछ नया गुल खिला दें तो अचरज नहीं होगा।दिनों दिन सांसद,विधायक के द्वारा पाला बदलने का खेल दोनों ही राष्ट्रीय राजनीतिक दल में दिखाई दे रही है।
जो हो देश सहित झारखंड और सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की जनता जनार्दन नेताओं को अपने नजरों से देख तो रही है। अब इन्हीं जनता जनार्दन को ही सभी राजनीतिक दल रिझाने के लिए साम दाम दण्ड भेद की राह अख्तियार करना है। अब देखना दिलचस्प होगा कि जनता जनार्दन किसके पक्ष में मतदान करने वाले हैं।

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