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देश के करोड़ों गरीबों को जेनेरिक दवा से हो सकता है सस्ता इलाज : सुधीर कुमार पप्पू

जमशेदपुर। डॉक्टर को लोग भगवान की उपाधि देते हैं परंतु डॉक्टर नहीं चाहते गरीबों को सस्ता और सुलभ इलाज मिले। अगर डॉक्टर मरीजों को जेनेरिक दवा अपनी पर्ची पर लिखना शुरु कर दे तो देश के करोड़ों करोड़ों गरीब जनता को सस्ता इलाज मुहैया हो सकता है। खेद का विषय है कि डॉक्टर दवा कंपनियों के लालच में आकर गरीब मरीजों को भी ब्रांडेड कंपनी की दवा लिखते हैं जिससे उन्हें महंगी उपहार मिलता है। अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने उक्त बातें कहीं हैं। उन्होंने कहा है कि स्वास्थ्य विभाग और देश के डॉक्टरों को इस विषय पर आत्म चिंतन करने की जरूरत है। सरकार को इस दिशा में कोई कठोर कानून बनाकर जेनेरिक दवा को सर्व सुलभ बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है। ब्रांडेड दवा कंपनियां सैकड़ों करोड़ो रुपए विज्ञापन में डॉक्टरों को उपहार देने में और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को खुश करने में लगा देती हैं नतीजा सैकड़ों गरीबों को सस्ता इलाज नहीं मिल पाता है । इसमें दवा दुकानदारों की अहम भूमिका है जो मरीजों को जेनेरिक दवाएं नहीं देकर ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में ब्रांडेड दवा देते है। भारत जैसे गरीब देशों के लिए यह अभिशाप है। सरकार के आदेश के बावजूद अस्पतालों में बैठे डॉक्टर जेनेरिक दवाएं मरीजों को नहीं लिखते है। दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव सुबह से शाम तक डॉक्टरों के क्लीनिक और अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं। डॉक्टरों से अनुरोध किया जाता है कि वे उनकी कंपनी का दवा लिखें ताकि उनको कंपनी के तरफ से अच्छे उपहार मिल सकते हैं। अधिवक्ता ने आगे कहा कि यह गैरकानूनी है बावजूद डॉक्टर धड़ल्ले से ब्रांडेड कंपनियों की दवाएं लिखते हैं इस पर सरकार और देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट भी नाराजगी व्यक्त कर चुकी हैं। सरकार को चाहिए कि कठोर कानून बनाकर डॉक्टरों को मजबूर करें कानून का पालन करने के लिए ताकि गरीबों को जेनेरिक दवा से सस्ता इलाज मुहैया करवाया जा सके। ब्रांडेड दवा और जेनेरिक दवा में अंतर सिर्फ बड़े और छोटे कंपनियों का है बड़े कंपनियां दवा बनाती है वह ब्रांडेड हो जाता है जबकि छोटी कंपनियां जो दवा बनाती है वह जेनेरिक है। इसीलिए दोनों की कीमत में काफी फर्क है। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार इस दिशा में पहल करें।

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