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छठ महापर्व देता है स्वच्छता एवं पर्यावरण संरक्षण का संदेश, प्लास्टिक व थर्मोकोल के उपयोग से करें परहेज़ : हिन्दूपीठ

जमशेदपुर। महापर्व छठ का उत्साह जमशेदपुर में खूब देखा जा रहा है। महापर्व छठ प्रकृति एवं स्वच्छता की पूजा है, जिसमें उगते एवं डूबते सूरज की पूजा-अर्चना की जाती है, वही छठ घाटों, नदी-तालाबों, सड़कों की साफ-सफाई करने में बड़ी जनभागीदारी देखी जाती है। छठ के पावन अवसर पर हिन्दूपीठ जमशेदपुर ने शहरवासियों से एक खास अपील की है। हिन्दूपीठ के अध्यक्ष अरुण सिंह ने कहा कि
“प्रकृति के महान पर्व पर प्लास्टिक का उपयोग ना करे, देखा जाता है कि अर्ध्य देने के लिए लोग प्लास्टिक के बने ग्लास में दूध व पानी डाल कर अर्ध्य देते हैं, फिर उस ग्लास को वही नदी या तालाब में छोड़ देते है। पवित्र गंगा जल भी प्लास्टिक के बोतल में मिलता है, लोग उस बोतल से अर्ध्य देते हैं, उसके बाद बोतल को नदी या तालाब में ही फेंक देते हैं।
हिन्दूपीठ आप सभी से अपील करता है कि प्रकृति के इस पर्व में अप्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल ना करे। छठ पूजा में लोग नदी और तालाबों में दिये को थर्मोकोल के बने दोने में रखकर प्रवाहित करते है,
आप सभी से आग्रह है कि आप पेड़ के पत्तों के दोना में ही दीप प्रवाहित करें।छठ घाटों पर पटाखो का इस्तेमाल बिलकुल ना करे। इन छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखकर हम ना केवल अपने प्रकृति की रक्षा करेंगे, वही हम खुद को भी सुरक्षित रखेंगे।
सबसे बड़ी बात यह है कि छठ पर्व सबको एक साथ पिरोने का काम करता है।इस पर्व में अमीर गरीब,बड़े छोटे का भेद मिट जाता है।सब एक समान एक ही विधि से भगवान सूर्य की पूजा करते हैं।अमीर हो या गरीब सभी मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद बनाते हैं।एंव सब एक साथ नदी तलाबो पर एक जैसे दिखते हैं,सभी का प्रसाद भी एक जैसा ही दिखता है और सभी बांस के बने सूप में में ही अध्य देते हैं।
छठ पर्व की धार्मिक मान्यताएं भी है और समाजिक महत्व भी है।क्यो कि इस पर्व मे सबसे बड़ी बात यह है कि इसमे धार्मिक भेद भाव,ऊच नीच,जात पात भूल कर सभी एक साथ छठ महापर्व मनाते हैं।
इसलिए छठ पर्व को लोक आस्था का महान पर्व कहा जाता है।

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