क्यो जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो
क्यो जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो।
राणा प्रताप के वंशज हो , क्यो कुल को कलंकित करते हो॥
आराध्य तुम्हारे राम-कृष्ण जो, कर्म की राह दिखाते थे।
जो दुश्मन हो आततायी तो, वो चक्र सुदर्शन उठाते थे॥
श्री राम ने रावण को मारा , तुम गद्दारों से डरते हो।
जब शस्त्रों से परहेज तुम्हें तो राम राम क्यो जपते हो॥
क्यो जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो।
अंग्रेज़ों ने दौलत लूटीं , मुग़लों ने थी इज्जत लूटी।
दौलत लूटीं , इज्जत लूटीं क्या खुद्दारी भी लूट लिय॥
गिधों ने माँ को नोच लिया , तुम शांति शांति को जपते हो ॥
इस भगत, आजाद की धरती पर क्यो नामर्दों से जीते हो?
क्यो जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो।।
हिन्दू हो, कुछ प्रतिकार करों , तुम भारत माँ के क्रंदन का ।
यह समय नहीं है, शांति पाठ और गाँधी के अभिनन्दन का ,
यह समय है शस्त्र उठाने का, गद्दारों को समझाने का,
शत्रु पक्ष की धरती पर फिर शिव तांडव दिखलाने का॥
इन जेहादी जयचंद्रो की घर में ही कब्र बनाने का,
यह समय है हर एक हिन्दू के , राणा प्रताप बन जाने का,
इस हिन्दूस्थान की धरती पर , फिर भगवा ध्वज फहराने का।।
ये नही शोभता है तुमको, जो कायर सी फरियाद करों ।
छोरो अब प्रेम-आलिंगन को कुछ, पौरुष की भी बात करों
इस हिन्दूस्थान की धरती के ,उस भगत सिंह को याद करों ।
जो बन्दूकों को बोते थे , तुम तलवारों से डरते हो।
क्यो जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो।।
२०१२ में लिखी गई कविता आज भी नै और जरुरी है |
डॉ राकेश दत्त मिश्र