
जिन्दगी के पन्ने पलटते वक्त
हर मनुष्य के जीवन के सामने
न किसी दर्द के आवाज आती है
जब चली जाती तो बताती भी नहीं
सिर्फ महसूस होती है,
न कर पाती  कभी भयान
कारण तो हर कहीं किसी न किसी से
 मिल ही जाती है
कितनी दूर हम देखते रहते
अखिर मिल जाय य न मिल जाय
इसका गुंजाइश ही नहीं
 खुदा के सभी बन्दे हम
 इसी विचार से नयी उमंग से
एक नये सुनहरे सुबह की ओर
राह देखते चलते रहते ऐसे ही
 कहाँ शुंरू कहाँ खत्म कोई
न जाने हमेशा
शुभम्
 लता सूर्यप्रकाश
कण्णकि नगर
मूत्तान्तरा
पालक्काड, केरला
 
				
