आनंदमूर्ति ने विष का पान कर यह बतला दिया कि कड़ी से कड़ी मुसीबत आए उसका का सामना उसका सामना हर नैतिकवान मनुष्य को करना होगा ना कि मैदान छोड़कर भाग जाना होगा
मुसीबत को उपहार के रूप में स्वीकार करना होगा तभी मनुष्य अपने जीवन में बड़ा से बड़ा कार्य* *कर सकता है सुख और दुख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जहां सुख है वहां दुख भी है
केवल सुख रहने से ही जीवन का अनुभव कभी नहीं हो सकता दुख का आना भी मनुष्य के जीवन में जरूरी है क्योंकि इससे मनुष्य को तथा आने वाली पीढ़ी को मुसीबत का सामना कैसे किया जाए सीखने का मौका मिलता है
जमशेदपुर 12 फरवरी 2023
आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आनंद मार्ग आश्रम गदरा में नीलकंठ दिवस मनाया गया इस अवसर पर 3 घंटे का “बाबा नाम केवलम “अखंड कीर्तन का आयोजन किया गया, नीलकंठ दिवस के अवसर पर इस अवसर पर आश्रम में लगभग 300 नारायणो को भोजन कराया गया एवं एक चिकित्सा शिविर में डॉ आशु के द्वारा चिकित्सा कर उचित दवा दिया गया दूसरी ओर
सोनारी कबीर मंदिर के पास गदड़ा आनंद मार्ग जागृति में
नीलकंठ दिवस के अवसर पर 265 वा मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए जांच शिविर का आयोजन पुर्णिमा नेत्रालय के सहयोग से आयोजित किया गया दोनों कैंप मिलाकर लगभग 120 लोगों की आंखों की जांच हुई इसमें लगभग 55 रोगी मोतियाबिंद के लिए चयनित हुए जिनका ऑपरेशन 16फरवरी एवं 21 फरवरी को पूर्णिमा नेत्रालय में किया जाएगा
पिछले दिनों ऑपरेशन चयनित लगभग 6 लोगों का निशुल्क ऑपरेशन कर देर से लगाया गया एवं दवा एवं चश्मा देकर सोनारी घर पहुंचा दिया गया, सोनारी एवं गदरा में
नीलकंठ दिवस के अवसर पर लगभग एक सौ लोगों के बीच फलदार पौधे का वितरण किया गया अमरूद, कटहल ,आम ,आंवला, पपीता एवं छोटे पौधे फूल के भी वितरित किए गए
आचार्य पारसनाथ ने नीलकंठ दिवस के अवसर पर कहां की
12 फरवरी 1973 को आनंद मार्ग के संस्थापक गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी को बिहार के पटना बांकीपुर सेंट्रल जेल में इंदिरा की तानाशाही कांग्रेस सरकार के द्वारा चिकित्सा के नाम पर दवा के रूप में जहर दिया गया था इसका असर पूरे शरीर पर प्रकृति के अनुकूल पड़ा श्री श्री आनंदमूर्ति जी के पूरे शरीर सिकुड़ गई आंखों की रोशनी चली गई सर के बाल उड़ गए सभी दांत झड़ गए उसके बावजूद भी गुरु श्री श्री आनंद मूर्ति जी जीवित रहे 12 फरवरी के दिन आनंद मार्गी पूरे विश्व में नीलकंठ दिवस के रूप में मनाते हैं इस ऐतिहासिक दिन के अवसर पर आनंद मार्ग के संस्थापक के जीवन के विषय में बताते हुए आचार्य पारसनाथ ने कहा कि श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने विष का पान कर दुनिया को यह बतला दिया कि दुनिया मे कितनी कड़ी से कड़ी मुसीबत आए उसका का सामना उसका सामना हर नैतिकवान पुरुष को करना होगा ना कि मैदान छोड़कर भाग जाना होगा मुसीबत को उपहार के रूप में स्वीकार करना होगा तभी मनुष्य अपने जीवन में बड़ा से बड़ा कार्य कर सकता है सुख और दुख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जहां सुख है वहां दुख भी है केवल सुख रहने से ही जीवन का अनुभव कभी नहीं हो सकता दुख का आना भी मनुष्य के जीवन में जरूरी है क्योंकि इससे मनुष्य को तथा आने वाली पीढ़ी को मुसीबत का सामना कैसे किया जाए सीखने का मौका मिलता है
इस कार्यक्रम में भुक्ति प्रधान सुधीर आनंद, देवव्रत, धर्मदेव सिंह , कार्तिक महतो, अमित , एवं सुनील आनंद तथा अन्य लोगों का भी सहयोग रहा