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क्यूँ कि मैं लड़‌की हूँ

मैं मील के पत्थर सी …
मिल जाऊंगी तुम्हें, कुछ दूरी पर ,

तुम्हारी हर राह में …हर मोड़ पर ,
तुम्हारे साथ खड़ी,
तुम्हें मंजिल का पता देती हुई,
मुस्कुरा कर तुम्हारा हौसला बढ़ाते हुए ,

लेकिन……….
मैं साथ नहीं चल संकूगी तुम्हारे,
बढ़ना होगा तुम्हें अकेले ही मंजिल की ओर,

मैं जड़ हूँ , बेबस हूँ ,चल नहीं सकती ;
और तुम ..ठहर नहीं सकते,
लेकिन कभी हताश मत होना;
और ना ही निराश,

क्यों कि बढ़ते जाना है तुम्हें
जिदंगी की राह में की मंजिल की ओर ,

कुदरत ने नवाजा है तुम्हें …
स्वच्छंदता के अनोखे उपहार से,
पर मैं बंधी हूँ अपनी मर्यादा और संस्कारों से

तुम्हारा अस्तित्व है ;
विस्तृत आकाश सा….
और मैं सीमित हूँ धरती सी ,
तुम्हें मिला है सुनहरा अवसर ;
कुछ कर गुजरने का

और मैं नदी सी बंधी हूँ किनारों से
जिसे चलना है एक तय-शुदा मार्ग पर
क्यों कि मैं लड़‌की हूँ ।।“
पूजा अग्रवाल,जोधपुर, राजस्थान

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