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हर एक मनुष्य देव शिशु है इस तत्व को मन में रखकर समाज की हर कर्म पद्धति पर विचार करना उचित होगा

आनंद मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनंदमूर्ति जी की 101 वा जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया


जमशेदपुर : आनंद मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनंदमूर्ति जी का 101वा जन्मदिन 16 मई को पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया 16 मई को जमशेदपुर गदरा आनंद मार्ग जागृति में भी मनाया गया इस अवसर पर 3 घंटे का “बाबा नाम केवलम “अखंड कीर्तन का आयोजन किया गया, नारायण सेवा ,वस्त्र वितरण ,गदरा चौक पर शरबत चना एवं पेड़ पौधों का वितरण, प्रभात लाइब्रेरी का उद्घाटन ,आनंद मार्ग के दर्शन पर आधारित क्विज प्रतियोगिता, आसन प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, गुरु के दिए हुए वाणी को विभिन्न भाषाओं में जैसे संस्कृत ,अंग्रेजी, बांग्ला, हिंदी ,भोजपुरी ,मगही ,छत्तीसगढ़ी एवं विभिन्न भाषाओं में पढ़ा गया कार्यक्रम के अंत में श्री श्री आनंदमूर्ति जी की वीडियो फिल्म भी दिखलाई गई धर्म प्रचार सचिव आचार्य सत्यआश्रयनंद अवधूत उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि वैशाखी पूर्णिमा के दिन गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी का जन्म 1921 में वैशाखी पूर्णिमा के दिन बिहार के जमालपुर में एक साधारण परिवार में हुआ था।

परिवार का दायित्व निभाते हुए वे सामाजिक समस्याओं के कारण का विश्लेषण उनके निदान ढूंढने में एवं लोगों को योग साधना आदि की शिक्षा देने में अपना समय देने लगे सन 1955 में उन्होंने आनंद मार्ग प्रचारक संघ की स्थापना बिहार के जमालपुर में की गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने समझा कि जिस जीवन मूल्य भौतिकवाद को वर्तमान मानव अपना रहे हैं। उनके शारीरिक व मानसिक और ना ही आत्मिक विकास के लिए उपयुक्त है अतः उन्होंने ऐसे समाज की स्थापना का संकल्प लिया जिसमें हर व्यक्ति को अपने सर्वांगीण विकास करते हुए अपने मूल्य को ऊपर उठाने का सुयोग प्राप्त हो उन्होंने कहा कि हर एक मनुष्य को शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है और समाज का कर्तव्य है कि इस अधिकार को ठीक से स्वीकृति दे वे कहते थे कि कोई भी घृणा योग्य नहीं किसी को शैतान नहीं कह सकते मनुष्य जब शैतान या पापी बनता है जब उपयुक्त परिचालन पथ निर्देशन का अभाव होता है। वह अपने कूप्रवृत्तियों के कारण बुरा काम कर बैठता है यदि उनकी कुप्रवृत्तियों को सूप्रवृत्तियों की ओर ले जाया जाए तो वह शैतान नहीं रह जाएगा हर एक मनुष्य देव शिशु है इस तत्व को मन में रखकर समाज की हर कर्म पद्धति पर विचार करना उचित होगा।

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