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प्रकृति पर्व सरहुल जो दो शब्दों से बना है, सरई और फूल


जमशेदपुर। सरहुल दो शब्दों के मेल से बना है – सरई और फूल। इसका अर्थ है – सरई फूल का पर्व। झारखंड के विभिन्न जनजातियों में इस पर्व को अलग अलग नाम से जाना जाता है। सरहुल के दिन प्रतीक के तौर पर पाहन (पुजारी) धरती और आकाश का विवाह रचाते हैं ताकि सृष्टि की क्रिया निर्बाध चलती रहे। इसके लिए सभी हर्षोल्लास के साथ इस पूजा में शामिल होते हैं। सरना स्थल पर सामूहिक पूजा, नृत्य संगीत के माध्यम से सब के कल्याण की कामना की जाती है। सरहुल पर्व मानव जाति के लिए संदेश है – कि संपूर्ण प्रकृति ही मानव जीवन का आधार है। इसका संरक्षण व संवर्धन हम सबका दायित्व है। सरहुल झारखंड की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। झारखंड के आदिवासी और सदान इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं। सरहुल सामाजिक सौहार्द कायम रखने का एक अनोखा उदाहरण है। सरहुल आदिवासी एवं मूल वासियों में आपसी एकता का प्रतीक है। आप सभी को प्रकृति पर्व सरहुल की हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं ।
डॉ अजय ओझा, संपादक – संपूर्ण माया (भोजपुरी संस्करण) & ब्यूरो चीफ – झारखंड, उपाध्यक्ष – झारखंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन, रांची
अध्यक्ष – भोजपुरी फाउंडेशन
महासचिव – मगध फाउंडेशन

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