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पृथ्वी सब की है और उसे सुरक्षित रखने का दायित्व भी हम सभी का है:लक्ष्मी सिन्हा


बिहार (पटना सिटी) राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने बातचीत में बताया कि विश्व पर्यावरण दिवस की थीम एक पृथ्वी में पिरोया है। इसका सीधा और सरल अर्थ है कि पृथ्वी सबकी है और उसे सुरक्षित रखने का दायित्व भी हम सभी का है। इसमें कोई दो_राय नहीं है कि आज पृथ्वी संकट के दौर से गुजर रही है। पर्यावरण के हालत बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं। अब हवा को देख लीजिए जिसने हर पल जीवन को साधा हुआ है। उसी हवा को आज हमने इस हालत पर पहुंचा दिया है कि हर देश की न किसी रूप मैं प्रदूषण की चपेट में है। जिस तरह से आवाजाही दुनिया में बड़ी है और अरबों वाहनों का प्रयोग हो रहा है, उससे हमने हवा को प्रदूषित कर दिया है। दुनिया भर में विभिन्न अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि सबसे ज्यादा प्राणवायु ही प्रदूषित हो रही है। अपने ही देश के प्रमुख शहर मुंबई,बेंगलुरु,हैदराबाद,चेन्नई, सूरत,पुणे आदि में प्रदूषण बड़ी सीमाओं को पार कर चुकी है। नासा और यूरोप की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने यह पाया है कि अफ्रीका, एशिया, मध्य पूर्व में 2005 और 2018 के बीच में वायु की गुणवंता में बहुत ज्यादा अंतर आया है और लाखों लोगों का जीवन भी वायु प्रदूषण ने लील लिया है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने बताया कि प्रदूषण के बढ़ने के पीछे ढांचागत विकास, आवाजाही, गैजेट्स व सुविधाओं के लिए ऐसी व अत्याधिक ऊर्जा का उपयोग बड़े कारण है। बात यहीं समाप्त नहीं होती। हमने प्रकृति के साथ जो व्यवहार किए हैं उसके हिसाब_किताब का भी समय आ चुका है हमने वनो को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई और यह माना गया है कि हमने दुनिया के करीब दो तिहाई वनो का अत्यधिक दोहन किया है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि प्रकृति संरक्षण दुनिया का साझा दायित्व है। स्वावलंबन के सूरज और पर्यावरण बचाने के पुरुषार्थ से ही यह पृथ्वी बचेगी। समय है कि पृथ्वी को मिलकर समझे और समाधान ढूंढें तो हम कुछ हद तक नियंत्रण कर पाएंगे। भारत में भी नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का वर्ष 2070 तक का संकलन लिया है। यही सीमा पहले 2050 की थी। इसमें वृद्धि करने के समुचित कारण है। दरअसल भारत में ऊर्जा उत्पादन का मुख्य स्रोत कोयला है। अन्य विकल्पों की उपलब्धता सीमित है। हर घर को रोशन करने की चुनौती अभी बनी हुई है। पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के लिए हमें वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबन बढ़ाना होगा। ऊर्जा के लिए जंगल काटने नहीं, फिर से जमाने होंगे। साथ ही यह भी आवश्यक है कि दुनिया में अब किसी भी देश के कार्बन उत्सर्जन को प्रदूषण का सूचकांक न बनाते हुए देश विशेष की जीवनशैली को आधार बनाना चाहिए। श्रीमती सिन्हा ने बताया कि जीवनशैली सूचकांक के आधार पर ऊर्जा के स्रोत के उपयोग की अनुमति होनी चाहिए। भरे देश जैसे यूरोप और अमेरिका पहले ही विकसित हो चुके हैं, वहां औसतन जीवनशैली दुनिया के अन्य देश से बेहतर है। एशिया, अफ्रीका के देश जितनी जीवनशैली आज भी निम्नतम है, वे कोयले पर ही उर्जा के लिए निर्भर हैं। उन्हें कोयले के उपयोग की मनाही नैतिकता नहीं मानी जा सकती, पर वैकल्पिक उर्जा की ओर प्रोत्साहित किया जा सकता है। हम एक पृथ्वी के मंत्र को गंभीरता से लेते हुए समानता के साथ सभी भागीदारी और सबको अवसर प्रदान करें, ताकि विश्व की आर्थिक परिस्थिति की को एक ही पैमाने पर मापा जा सके। पृथ्वी को बचाने के लिए इतना पुरूषार्थ तो करना ही होगा। तब ही एक पृथ्वी व एक सूरज का नारा खरा उत्तर सकेगा।

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