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जलवायु जोखिम वाले जिलों में रहते हैं 80 प्रतिशत से अधिक लोग-सीईईडब्ल्यू

जमशेदपुर/धनबाद। भारत में असम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, और बिहार बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा जोखिम वाले राज्य हैं। यह जानकारी अपनी तरह के पहले क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स (जलवायु सुभेदयता सूचकांक) से सामने आई है, जिसे काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) ने जारी किया है। कुल मिलाकर, भारत के 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के जोखिम की चपेट में हैं, जो अक्सर स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं और कमजोर समुदायों को विस्थापित करते हैं। इतना ही नहीं, 80 प्रतिशत से अधिक भारतीय जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के जोखिम वाले जिलों में रहते हैं। इंडिया क्लाइमेट कोलेबोरेटिव एंड एडलगिव फाउंडेशन की ओर से समर्थित इस अध्ययन में आगे कहा गया है कि भारत के 640 जिलों में से 463 जिले अत्यधिक बाढ़, सूखे और चक्रवात के जोखिम के दायरे में हैं। इनमें से 45 प्रतिशत से अधिक जिले अस्थिर परिदृश्य और बुनियादी ढांचे में बदलावों का सामना कर चुके हैं। इसके अलावा, 183 हॉटस्पॉट (सबसे ज्यादा घटनाओं वाले) जिले जलवायु संबंधी एक से अधिक चरम घटनाओं के लिए अत्यधिक जोखिम की चपेट में हैं। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 60 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिलों में मध्यम से निम्न स्तर तक की अनुकूलन क्षमता मौजूद है। सीईईडब्ल्यू का यह अध्ययन अपनी तरह का पहला आकलन है, जो जलवायु संबधी चरम घटनाओं के लिहाज से भारतीय जिलों के लिए जोखिम का विश्लेषण करता है। सीईईडब्ल्यू का अध्ययन बताता है कि भारत के पूर्वाेत्तर के राज्यों के लिए बाढ़ों का, जबकि मध्य और दक्षिण भारत के राज्यों के लिए भीषण सूखे का जोखिम सबसे ज्यादा है। इसके अलावा पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में कुल जिलों में क्रमशरू 59 और 41 प्रतिशत जिले भीषण चक्रवातों के जोखिम की चपेट में हैं। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन के अनुसार, केवल 63 प्रतिशत जिलों के पास ही जिला आपदा प्रबंधन योजना (डीडीएमपी) उपलब्ध है। चूंकि, इन योजनाओं को प्रति वर्ष अद्यतन बनाने (अपडेट करने) की जरूरत होती है, इस लिहाज से 2019 तक इनमें से सिर्फ 32 प्रतिशत जिलों ने ही अपनी योजनाएं अपडेट की थी। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, और गुजरात जैसे ज्यादा जोखिम वाले राज्यों ने हाल के वर्षों में अपने डीडीएमपी और जलवायु परिवर्तन-रोधी मुख्य बुनियादी ढांचों में सुधार किया है।

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