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खोल खजाना हो ली रे भाग 02

रंगों से रिझाने का
बहाना मीले है होली में।
आ बैठ, करें मन की बातें
रख रंग गुलाल होली में।।

आजा खेलें होली रे।।

चढ़ा भंग तब विहँसी बोली
कसने लगी मोरी चोली रे।
उर इंद्रियों में उमंग भरे है
मीठी तोरी बोली रे।।

आजा खेलें होली रे।।

मन की मन से बात हुई
परमानन्द की नात हुई।
खेल खेल में खो ली रे
शर्मीली लिली बोली रे–

अब ना खेलूं होली रे।।

देख विधाता की रचना को
मनवा डोले चोली में
शोर-शराबे की स्वर सुन
छोरी छन से बोली रे–

अब ना खेलूं होली रे।।

अब बैठ करूँ न मन की बातें
हो ली जो कुछ हो ली रे।

अब ना खेलूं होली रे।।

स्वरचित रचना आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर अम्बिकापुर।।

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