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क्या पुतिन की मांग के सामने झुकने लगे हैं यूरोप के देश

रूस का कहना है कि अब वो पोलैंड और बुल्गारिया को गैस आपूर्ति नहीं करेगा क्योंकि इन दोनों देशों ने उसकी मुद्रा रूबल में भुगतान करने से इनकार कर दिया। यूरोपियन यूनियन ने कहा है कि रूस का ये क़दम ब्लैकमेल करने जैसा है.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे भी देश हैं जिन्होंने रूस की मांगें मान ली हैं. इससे ये संकेत मिलते हैं कि धीरे-धीरे ही सही यूरोप के कुछ देश व्लादिमीर पुतिन के सामने नरम पड़ने लगे हैं.

क्या हुआ

यूक्रेन पर आक्रमण के बावजूद रूस ने यूरोपीय देशों को गैस आपूर्ति जारी रखी है.

हालांकि, पश्चिमी देशों की ओर से रूस पर कई सख़्त प्रतिबंध लगाए जाने के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने एलान कर दिया कि ‘ग़ैर-मित्र’ देशों को गैस के ख़रीदने के लिए रूसी मुद्रा में भुगतान करना होगा.रूस की सरकारी ऊर्जी कंपनी ‘गैज़प्रॉम’ ने कहा कि उसने पोलैंड और बुल्गारिया को आपूर्ति बंद कर दी है और अब इसे तब तक बहाल नहीं किया जाएगा, जब तक पेमेंट रूबल में नहीं किया जाता.

ईयू कमिशन की अध्यक्ष उर्सूला वॉन डेर लेयेन ने चेताया कि यूरोप में ऊर्जा मुहैया कराने वाली कंपनिया रूस की मांगों के ख़िलाफ़ हैं क्योंकि इससे संभवतः ईयू द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन होगा.
रूबल में भुगतान करने लगे चार यूरोपीय देश?

रूस की बड़ी ऊर्जा कंपनी गैज़प्रॉम के क़रीबी सूत्र ने ब्लूमबर्ग से बताया है कि चार यूरोपीय देशों ने व्लादिमीर पुतिन की मांगों को मानते हुए गैस आपूर्ति के लिए रूबल में भुगतान करना शुरू कर दिया है.

ब्लूमबर्ग ने एक सूत्र के हवाले से बताया है कि यूरोप की 10 कंपनियों ने गैज़प्रॉम बैंक में अकाउंट खोल लिया है. रूस की भुगतान संबंधी मांगो को पूरा करने के लिए ये खाता खुलवाना ज़रूरी है.

ईयू द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए रूस ने मांग रखी थी कि एक अप्रैल से सभी आपूर्ति के लिए देशों को रूबल में भुगतान करना होगा. लेकिन यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों ने ऐसा करने से ये कहते हुए इनकार कर दिया था कि इससे रूस पर लगे प्रतिबंधों का उल्लंघन होगा.

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यूरोप को कितनी गैस आपूर्ति करता है रूस?
साल 2019 में ईयू के कुल प्राकृतिक गैस आयात में से 41 फ़ीसदी रूस से ही आता था.

अगर यूरोप को रूस की ओर से होने वाली गैस सप्लाई बंद हो जाएगी तो इटली और जर्मनी सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि यही दोनों देश सबसे ज़्यादा गैस आयात करते हैं.

ब्रिटेन अपनी ज़रूरत का केवल पाँच फ़ीसदी गैस ही रूस से आयात करता है और अमेरिका रूस से बिल्कुल भी गैस आयात नहीं करता है.

पोलैंड का गैस भंडार 76 फ़ीसदी भरा है लेकिन बुल्गारिया के पास सिर्फ 17 फ़ीसदी गैस ही बची है.

एनर्जी पॉलिसी रिसर्च ऐनालिस्ट सिमोन टगलियापियेत्रा ने कहा, “ये कुछ दिनों का मसला नहीं है. समस्या अगली सर्दियों में होगी, इसलिए भंडार को दोबारा भरना ज़रूरी है.”

रूस की गैस का विकल्प क्या है?
बुल्गारिया का कहना है कि वो अज़रबैजान से मिलने वाली गैस आपूर्ति को बढ़ाने पर विचार कर रहा है और साथ में तुर्की-ग्रीस से भी सौदे कर रहा है.

पोलैंड नॉर्वे की गैस भंडारों से जोड़ने के लिए नई पाइपलाइन बना रहा है, जो कि अक्टूबर 2022 तक बन जाएगी. इसके अलावा पड़ोसी देश लिथुआनिया से भी गैस आपूर्ति भी बढ़ा रहा है.

पोलैंड के उप विदेश मंत्री ने बीबीसी से कहा, “हमारे पास अमेरिका और खाड़ी देशों सहित दूसरे सहयोगियों से गैस ख़रीदने का विकल्प है.”

यूरोप भी क़तर, अल्जीरिया या नाइजीरिया जैसे मौजूदा निर्यातकों के पास भी जा सकता है लेकिन कम समय में उत्पादन बढ़ाने में कुछ व्यावहारिक दिक़्क़तें हैं.

रिसर्च ऐनालिस्ट बेन मैकविलियम्स का कहना है, “गैस आपूर्ति के लिए दूसरे विकल्प देखना मुश्किल है क्योंकि हमारे पास ये बड़ी पाइप हैं जो रूस से सीधे यूरोप तक गैस ला रही हैं.”

अमेरिका इस साल के आखिर तक यूरोप को अतिरिक्त 15 अरब क्यूबिक मीटर लिक्विफ़ाइड नैचुरल गैस (एलएनजी) देने को तैयार हो गया है.
लक्ष्य ये है कि कम से कम साल 2030 तक हर साल 50 अरब क्यूबिक मीटर अतिरिक्त गैस आपूर्ति की जाए.

यूरोप ऊर्जा के अन्य स्रोतों के इस्तेमाल को भी बढ़ा सकता है लेकिन ऐसा करने में समय लगेगा और ये उतना आसान भी नहीं है.

टगलियापियेत्रा कहते हैं, “अक्षय ऊर्जा को लागू करना काफ़ी समय लेने वाली प्रक्रिया है और फिलहाल ये समाधान नहीं है.”

“अगली सर्दियों में हम कोयला से चलने वाले पावर प्लांट को खोलकर कुछ बदलाव कर सकते हैं, जैसा कि इटली और जर्मनी ने आपात स्थिति में करने की योजना बना रहे हैं.”

यूरोपीय संघ ने 2030 से पहले यूरोप को रूसी जीवाश्म ईंधन से मुक्त करने की योजना का प्रस्ताव दिया है – जिसमें गैस आपूर्ति में विविधता लाने और हीटिंग और बिजली उत्पादन में गैस को रिप्लेस करना शामिल है.

की कमी पूरी कैसे होगी?
ऊर्जा नीति पर अनुसंधान करने वाले बेन मैकविलियम्स का इस बारे में कहना है कि गैस की तुलना में तेल आपूर्ति का विकल्प ढूंढना आसान है, क्योंकि रूस से थोड़े ही तेल आते हैं, “बाक़ी दूसरे जगहों से आते हैं.”

उधर, अमेरिका सऊदी अरब से कह रहा है कि वो अपना तेल उत्पादन बढ़ाए. हालांकि सऊदी अरब ने तेल की क़ीमतें कम करने के लिए उत्पादन बढ़ाने का अमेरिकी अनुरोध पहले ख़ारिज कर चुका है.

तेल आपूर्ति करने वाले देशों के संगठन ओपेक में सऊदी अरब सबसे बड़ा उत्पादक है. मालूम हो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल का लगभग 60% कारोबार ओपेक ही करता है. तेल की क़ीमतें तय करने ओपेक की भूमिका काफ़ी अहम है. अभी तक ओपेक का कोई भी सदस्य देश उत्पादन बढ़ाने के किसी अनुरोध पर तैयार नहीं हुआ है.

रूस हालांकि ओपेक का सदस्य नहीं है. लेकिन तेल उत्पादकों की आय सुधारने के लिए वो ‘ओपेक प्लस’ के नाम से 2017 से ओपेक के साथ काम कर रहा है.

अमेरिका, वेनेज़ुएला पर लगाए गए तेल निर्यात के प्रतिबंधों में ढील देने पर भी विचार कर रहा है. वेनेज़ुएला पहले अमेरिका जाने वाले तेल का प्रमुख निर्यातक हुआ करता था, लेकिन अब वो बड़े पैमाने पर चीन को अपना तेल बेच रहा हैहै
रूस के तेल और गैस पर कौन से प्रतिबंध हैं?
अमेरिका ने रूस के तेल, गैस और कोयला आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध का एलान कर दिया है.

यूके रूसी तेल पर इस साल के अंत तक अपनी निर्भरता खत्म कर देगा और ईयू गैस आयात को दो-तिहाई तक कम कर देगा.

रूस ने चेतावनी दी थी कि उसके तेल पर प्रतिबंध से “वैश्विक बाज़ार में तबाही लाने वाले परिणाम होंगे.”

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ही तेल और गैस दोनों की कीमतें बढ़ गई हैं.
अमेरिका और सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है.

रूस हर दिन करीब 50 लाख बैरल कच्चा तेल निर्यात करता है. प्रतिबंधों के एलान से पहले तक इसका आधा हिस्सा यूरोप को जाता था.

यूके की तेल की ज़रूरत का 8 फ़ीसदी रूस से आयात किया जाता है.

रूसी तेल पर अमेरिका की निर्भरता कम है. 2020 में अमेरिका का लगभग 3% तेल रूस से आ रहा था.

आईईए के अनुसार, अप्रैल महीने में रूस का तेल उत्पादन घटकर 7 लाख बैरल प्रतिदिन ही रह गया.

आईईए का कहना है कि अप्रैल महीने के आखिर तक उत्पादन घटकर 15 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच सकता है और मई तक ये करीब 30 लाख बैरल हो जाएगा.

इसके पीछे कारण ये है कि मार्च महीने से ही यूरोपीय खरीदार रूस का विकल्प खोज रहे हैं और अमेरिका ने भी रूसी तेल के आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है.

रूस को अब अपने तेल के लिए एशिया या और कहीं नए बाज़ार खोजने पड़ेंगे लेकिन यदि उत्पादन में कमी जारी रही तो इसका अंततः उसकी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा.

ईंधन के ख़र्चों का क्या होगा?
इस युद्ध के चलते उपभोक्ताओं को बिजली और ईंधन के बढ़े हुए बिलों का सामना करना पड़ेगा. ब्रिटेन में, ईंधन की क़ीमतों पर लगाम लगाकर ईंधन बिल क़ाबू में रखे गए हैं.

हालांकि अप्रैल में जब इसके दामें पर लगे कैप बढ़ा दी जाएगी तो अप्रैल में ईंधन का बिल 700 पाउंड से बढ़कर क़रीब 2,000 पाउंड हो जाएगा.
आने वाले पतझड़ के मौसम में जब दाम फिर बढ़ाए जाएंगे तो ईंधन का बिल लगभग 3,000 पाउंड तक पहुंच हो जाएगा.

ब्रिटेन में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें भी बढ़ गई हैं. अब सरकार ने ईंधन शुल्क घटाने का एलान किया है, क्योंकि गाड़ी चलाने वाले रिकॉर्ड क़ीमतों के साथ संघर्ष कर रहे हैं.

मैकविलियम्स के अनुसार, “मुझे लगता है कि हम ऐसी दुनिया में हैं, जहां यदि रूसी तेल और गैस यूरोप जाना बंद कर दे, तो हमें इसका इस्तेमाल करने के लिए हमें इन चीज़ों की राशनिंग करनी होगी.”

मैकविलियम्स ने कहा, “अब बातचीत का हिस्सा ये है कि क्या हम लोगों से कह सकते हैं कि वे अपने घरों को एक डिग्री कम गर्म करें.”

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