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अभिभावकत्व का महान दायित्व मनुष्य के ऊपर ही है

जमशेदपुर । कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए, भारत सरकार के कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए वेबीनार के माध्यम से तीन दिवसीय प्रथम संभागीय सेमिनार का आयोजन किया गया है जमशेदपुर एवं उसके आसपास के सभी आनंद मार्गी घर बैठे ही प्रथम संभागीय सेमिनार का लाभ ले रहे हैं, तीन दिवसीय सेमिनार के दूसरे दिन
आनन्दमार्ग प्रचार संघ द्वारा आयोजित प्रथम संभागीय सेमिनार 2022 के अवसर पर आनन्दमार्ग के वरिष्ठ
आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने

“नव्यमानवतावाद-अंतिम आश्रद्य” विषय पर बोलते हुए कहा कि आज मानवतावाद के नूतन व्याख्या की जरूरत है और वह नए सिरे से व्याख्यायित मानवतावाद ही नव्यमानवतावाद है। नव्यमानवतावाद कहता है कि जिस तरह अपने लिए मनुष्यों को उसका अस्तित्व जितना प्रिय लगता है उसी तरह दूसरे व्यष्टि के लिए उसका अपना अस्तित्व भी उतना ही प्रिय है। हर एक जीव को इस अस्तित्व-प्रियता को
यथायोग्य मूल्य न देने पर सामग्रिक रूप से मानविकता का विकास असम्भव हो जायगा। अतः मनुष्य को केवल अपने परिवार, जाति या गोष्ठी की बात न सोचकर सामग्रिक रूप से मनुष्य के बारे में सोचना होगा, सामग्रिक रूप से जीव जगत, जन्तु जगत, उद्भिज जगत के कल्याण के बारे में विचार करना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह अवश्य ही क्षतिकारक है। नव्यमानवतावाद कहता है कि पूरे सृष्टि के सृष्ट जीवों की सुरक्षा, वायु एवं जल तथा पर्यावरण के संतुलन की सुरक्षा करनी होगी क्योंकि सबको समान अस्तित्विक अधिकार प्राप्त है। इस सृष्टि के मध्य, इस सृष्ट जगत में केवल मनुष्य ही सबसे अधिक चिन्तनशील प्राणी है। इस कारण समस्त सृष्ट जगत के
अभिभावकत्व का महान दायित्व मनुष्य के ऊपर ही है। अतः मानवतावाद की मूल धारा को मानव मात्र में ही अवरुद्ध न रखकर विश्व के चर-अचर में व्याप्त कर देना होगा। इसे ही नव्यमानवतावाद कहेंगे। यह नव्यमानवतावाद मनुष्य के मानवतावाद को विश्वेकतावाद में सर्वजीव भाव में व्याप्त कर देगा। अतः वह आदर्श जो भूमा भ्रातृत्व के आदर्श की वकालत करता है, जो मनुष्य के साथ पौधों, जन्तुओं एवं विश्व ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण के साहचर्य को प्रकट करता है, नव्यमानवतावाद कहलाता है। यदि विशुद्ध आध्यात्मिकता मनुष्य का लक्ष्य
है तो नव्यमानवतावाद उसका पथ है। हर जीव के अस्तित्वप्रियता को यथायोग्य मूल्य न देने पर सामग्रिक रूप से
मानवकता का विकास असंभव हो जायगा। मनुष्य को व्यष्टि या परिवार, जाति या गोष्ठी से ऊपर उठकर सामग्रिक रूप में मनुष्य, जीव जगत, उद्भिज जगत के कल्याण के बारे में विचार करना होगा अर्थात्‌ सर्वजन हिताय सर्वजन कल्याणार्थ सोचना होगा। मनुष्य को विवेक एवं भक्ति के पथ पर चलना होगा। संकीर्ण भावप्रवणतायें एवं संकीर्ण दृष्टिकोणों या डोगमा (अंधविश्वास) के पथ को त्याग करना होगा एवं सार्वभौमिक
दृष्टिकोण को अपनाना होगा। आज मनुष्य अपने ही सृष्ट वस्तुओं एवं परिस्थितियों से भयभीत है। आज मनुष्य
नैतिकता, मतवाद, समुदाय, भाषा और राजनीतिक विचारों के द्वारा बँटा हुआ है। वह प्राकृतिक संसाधनों का शोषण एवं उनकी उपेक्षा करता है। उसने पृथ्वी की जल, हवा एवं वातावरण को प्रदूषित कर रखा है। पार्थिव संकट के इस युग में पी.आर. सरकार का नव्यमानवतावाद ही एकमात्र समाधान है। पूरे विश्व ब्रह्माण्ड में एक ही सतता परमात्मा की अभिव्यक्ति के रूप में देखना होगा। सबके जीवन मूल्य, अस्तित्विक मूल्य एवं उपयोगिता
मूल्य को ध्यान में रखकर चलना होगा। अतः मनुष्य निर्मिति सभी भेदभावों- जाति, रंग, भाषा, राष्ट्रीयता से ऊपर
उठना होगा। यही नव्यमानवतावाद की अन्तरात्मा है जो 360 डिग्री वाले सार्वभौमवाद में आश्रय लेती है। आज का युग नव्यमानवतावाद का युग है। मानवता एक नए युग के कगार पर खड़ा है। मानवता एक एवं अविभाज्य है- परम सत्ता को प्रेम करने का मतलब है- सबको प्रेम करना क्योंकि सभी उसी एक परम सत्ता की अभिव्यक्ति है।

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