बिहार । पटना राज्य अब केंद्र की दया के मोहताज बनकर रह गई है। अगर भारत को विकसित देश बनाना है तो राज्यों को सशक्त बनाए बिना संभव नहीं होगा। मौजूदा सरकार जिस प्रकार से कम कर रही है, उससे किसी को कोई संदेह नहीं रह जाती की राज्यों में विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए धनशोधन रोकथाम अधिनियम,2022 (पीएमएलए) का सहारा लिया जा रहा है। इससे राजनीतिक अराजकता और संघीय ढांचे के समक्ष अस्थिरता उत्पन्न हुई है। यह बातें सुरक्षा समाज पार्टी की बिहार प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा उन्होंने आगे कहा कि राज्यों के राजनीतिक समीकरण बदलने के लिए खासतौर से ईडी का इस्तेमाल किया जा रहा है। महाराष्ट्र से लेकर झारखंड तक हाल में इसके उदाहरण दिखे। नेताओं के दरवाजे पर ईडी की दस्तक के साथ उन्हें डराया जा रहा है। भयादोहन से उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए विवश किया जाता है। कोई भी नेता इस स्थिति में नहीं फंसना चाहता। इसमें पुलिस कस्टडी से लेकर न्यायिक हिरासत तक के पेच शामिल है। कई बार कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़कर, झूठा आरोप लगाकर और संदिग्ध मामलों में फंसाकर भी भाजपा में शामिल कराया जा रहा है। कुछ प्रमुख नेताओं के खिलाफ राजनीतिक व्यूह रचना में तो ईडी का ऐसा इस्तेमाल किया गया कि चुनी हुई सरकारें गिर गई। महाराष्ट्र में उदय ठाकरे सरकार को इसी तरह गिराया गया। कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण का बीते दिनों भाजपा में शामिल होना विपक्ष के लिए एक बड़ा झटका है। भाजपा के साथ उनके जुराब के पीछे उनके विरुद्ध चल रहे लंबित मामले भी हो सकते हैं। झारखंड के मामले में तो ईडी का दुरुपयोग और भी गंभीर है। हेमंत सोरेन पर पर 8.5 करोड रुपए की बेनामी जमीन रखने का आरोप है कि उन्होंने यह 1978 और 1988 में हथियाई, जब वह बालिक भी नहीं हुए थे। जिस जमीन का मुद्दा है, वह किसी गैर-आदिवासी को हस्तांतरित नहीं की जा सकती। ईडी का वह दावा तो बहुत दिलचस्प है कि उसने समय पर राजस्व रजिस्टर हासिल कर लिया, अन्यथा उसमें हेमंत सोरेन का नाम डाल दिया गया होता। इसके अलावा, राज्य सरकार द्वारा जांच के बाद जमीन पहले ही उनके वास्तविक आदिवासी मलिक को सौप दी गई।पीएमएलए के प्रविधानों के उलट ईडी ने अब उन मामलों की भी जांच शुरू कर दी है, जो राज्य सरकार की जांच एजेंसियों के दायरे में आते हैं। इसमें से किसी भी आरोप को देखे तो स्वीकारोक्ति के बावजूद यह पीएमएलए के तहत अधिसूचित नहीं होती। फिर भी, मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर पुलिस हिरासत में ले लिया गया। नीतिगत मोर्चे पर भी राज्यों को परेशान किया जा रहा है। शिक्षा का ही उदाहरण लीजिए। शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, लेकिन उसमें केंद्र का वर्चस्व है। शिक्षा के मोर्चे पर संघ से साम्यता न रखने वाली राज्य की कोई भी नीति व्यापक रूप से निष्प्रभावी मानी जाती है। परिणामस्वरूप स्कूली और उच्च शिक्षा के मामले में केंद्र सरकार का प्रभावी नियंत्रण हो जाता है। इसके चलते केंद्र सरकार इतिहास को वीरूपित करने के साथ ही नई पीढ़ी को हिंदुत्व के रंग में रंग रही है। यहां तक की हमारी अर्थ-संघीय संरचना भी धीरे-धीरे कमजोर हो रही है। संघ के वित्तीय संसाधनों का वितरण वित्त आयोग द्वारा किया जाता है। 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार विभाजन योग्य संग्रहित केंद्रीय करों का 41 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिया जाएगा, लेकिन राज्यों को 32 प्रतिशत आवंटन हो रहा है, क्योंकि अधिभार और उपकरों में राज्यों की कोई भागीदारी नहीं होती। चुकी भारत सरकार का राजकोषीय घाटा डीजीपी के 5.8 प्रतिशत के दायरे में है और ऐसे आसार है कि चालू वित्त वर्ष में उसे बजट अनुमान से अधिक उधारी के उधार लेने की एक सीमा निर्धारित कर दें। समानता और सामाजिक न्याय जैसे व्यापक लक्ष्यों की पूर्ति में केंद्र की पूर्ति में केंद्र की जिम्मेदारी कहीं बड़ी है, लेकिन वह यह भी विचार करे कि राज्यों को उनकी वित्तीय नीतियां निर्धारित करने की पर्याप्त गुंजाइश मिले, ताकि वे अपने निवासियों की आकांक्षाओं के अनुरूप नीति बना सकें। जिसमें केंद्र की विफलता देश में सामाजिक संकेतकों की निराशाजनक स्थिति के रूप में झलकती है। केंद्र ने ऐसा आर्थिक माडल अपनाया हुआ है, जिसमें संपन्न वर्ग और संपन्न होता जा रहा है तो गरीब वर्ग लाभ नहीं उठा पा रहा, क्योंकि राज्यों के पास वित्तीय संसाधनों का अभाव है। सहकारी संघवाद केवल बार-बार दोहराया जाने वाला वादा ना होकर वास्तविकता के धरातल पर भी उतारे। इसमें वृहत आर्थिक स्थायित्व के साथ ही प्रत्येक राज्य की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं का भी ध्यान रखा जाए। राज्यों को केंद्र के राजनीतिक आधिपत्य के साथ ही आर्थिक प्रभात भी झेलनी पड़ रही है। यह हमारी संवैधानिक व्यवस्था और समग्र आर्थिक एवं सामाजिक विकास माडल के विपरीत है। राज्य अब केंद्र की दया के मोहताज बनकर रह गई है। केंद्र द्वारा जिस प्रकार संघीय ढांचे पर आघात किया जा रहा है, उससे हमारे संविधान की आभा छीज रही है। मगर भारत को विकसित बनाना है तो यह रवैया बदलना होगा।
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