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प्यारे बच्चों


आज सुनाती हूँ एक कविता
गौर फरमाना बच्चों प्यारे
इस जीवनरूपी आकाश के
तुम हो नन्हें नन्हें तारे ॥

तुझ पर ही है प्यारे बच्चों
हर एक मानव को आस
दुनिया की हर बुराई मिटा कर
फैलाना है तुझे प्रकाश ॥

स्मरण रहे बच्चों सदा
तुम ही हो देश की थाती
बेशक जाओ तुम चाँद पर
लेकिन मूलाधार है तेरी माटी ॥

पर आज का यह डीजिटल युग
छीन रहा सुनहरा बचपन
कहाँ गया गिल्ली डंडा पतंग
कंचे गोली वाला लड़कपन ॥

क्या तुमने कभी देखी है
लाल काली चूरन की पुड़िया
क्या तुमने कभी सजायी है
लाल चुनरी से अपनी गुड़िया ॥

मैं नही कहती टी.वी.मोबाइल से
बच्चों तुम सब परहेज कर
लेकिन दादी की कहानियों के भी
सुंदर संदेश रखना सहेज कर ॥

कभी चलाओ बारिश की पानी में
अपनी प्यारी सी कागज की कश्ती
कभी कभी कर लो तुम
मोबाइल गेम से भी मस्ती ॥

कभी बगिया में जाकर
सुनों गौरैया की चहक
कभी आनंद लो वर्षा में
सोंधी माटी की महक ॥

देखो बच्चों यह मोबाइल
बड़ा उपयोगी आविष्कार है
पर करना सही प्रयोग इसका
वरना सब बेकार है॥

सुस्मिता मिश्रा, जमशेदपुर झारखंड

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