पटना। विधानसभा चुनाव तो केवल 5 प्रांतों में ही हो रहे हैं। मगर देश भर में सभी संचार माध्यम और अधिकांश नेता उसी के संबंध में चर्चा करने, रणनीति बनाने और विश्लेषण करने में व्यस्त हैं। आजकल हर स्तर के चुनावों में प्रदेश की सरकारों का पूरा तंत्र उनकी व्यवस्था में लग जाता है। लोकसभा से लेकर पंचायतों तक के चुनाव का यह सिलसिला प्रतिवर्ष चलता रहता है। सबसे पहले प्रशासन इस कार्य में अध्यापकों को लगाता है। उसका सीधा प्रभाव बच्चों की शिक्षा और विशेषकर उसकी गुणवत्ता पर पड़ता है। यह बातें प्रेस बयान जारी कर राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की प्रदेश संगठन सचिव लक्ष्मी सिन्हा ने कहा। उन्होंने कहा कि अनेक अवसरों पर लोकसभा के चायनित सदस्य विधानसभा का या विधानसभा सदस्य लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं। जीत जाने पर पहला पद छोड़ देते हैं। फिर उपचुनाव होता है। उसका सारा बोझ जनता उठाती है। ऐसे ही तब भी होता है जब कोई व्यक्ति दो जगह से चुनाव लड़ कर दोनों क्षेत्रों से विजय होता है। वही दागी उम्मीदवारों ने चुनाव व्यवस्था में अपना एक स्थायी मुकाम जान लिया है। अधिकांश राजनीतिक दल इन पर अपनी निर्भरता स्वीकार करने से भी गुरेज नहीं कहते हैं। कुछ संस्थाएं समय-समय पर चयनित, परंतु दागी प्रतिनिधियों के विरुद्ध दर्ज मुकदमों में संबंधित आंकडे तैयार करती है। उन्हें प्रचारित और प्रसारित करती है। चुकी यह सब दशकों से होता आ रहा है, ऐसे में इसे अब चुनाव व्यवस्था का आवश्यक अंग सा मान लिया गया है। ठोस चुनाव सुधारों की आवश्यकता को अब कोई दल खास महत्व नहीं देता। खानापूर्ति के लिए इसे अनेक अवसरों पर बस दोहरा दिया जाता है। यह निश्चित ही चिंताजनक स्थिति है। इसे लोकतंत्र का अहित हो रहा है। ऐसे दर्द हो रहा है जब पिछले सात दशकों में भारत का मतदाता लोकतंत्र के मूल मंतव्य को समझ गया है। वह अपने वोट का महत्व में जान गया है। जिन लोगों ने स्वतंत्रता के बाद के 20 वर्षों को निकट से देखा है, वे उस समय जनता और चयनित प्रतिनिधियों के मध्य पारस्परिक सम्मान सेवा की भावना का सही वर्णन कर सकते हैं। भारतीय जनतंत्र और चुनाव तंत्र में इस पारस्परिक विश्वास का हृास लोकतंत्र की अनेकानेक सकारात्मक उपलब्धियों पर भारी पड़ता जा रहा है। दुर्भाग्य से सामान्य मतदाता भी हर स्तर के चुनाव में लगातार कमजोर होते नैतिक पक्ष को अब अन्यमनस्क भाव से देखने लगा है। एक सशक्त लोकतंत्र में यह स्थिति अस्वीकार्य मानी जानी चाहिए। समाज के प्रबुद्ध वर्ग को राजनीतिक से जुड़ी वैचारिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर आगे आना होगा। देश में ऐसे परिवेश का निर्माण निर्माण करना होगा जिसमें चुनाव जनहित में नई संभावनाओं को जन्म दे सके, लोगों में जनतंत्र के प्रति व्यवस्था बने जिसमें उसी व्यक्ति का चयन हो जो जनसेवा में स्वयं को समर्पित कर चुका हो, जिसके पास मतदाता जाकर चुनाव लड़ने का अनुरोध करें और जिनकी आर्थिक स्थिति उसके चयन में बाधा ना बने। उपरोक्त बातें राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ लक्ष्मी सिन्हा ने कहा।
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