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कुंडलियाँ


1-
हमने देखे हैं बहुत,उपवन बाग तड़ाग |
छिपी काकपाली दिखी,दिखे मुखर बहु काग |
दिखे मुखर बहु काग,बेसुरे स्वर उच्चारें |
मिल कर करते काँव,मधुर स्वर को धिक्कारें |
कह वसंत कर जोड़,दृश्य यह देखा सब ने |
फिर भी पिक का गान,रुका कब देखा हमने |

2-
रवि ने रूप प्रचंड धर,छोड़े तीखे वाण |
खेचर भूचर के फँसे,तृषित कंठ में प्राण |
तृषित कंठ में प्राण,पेड़ क्यों काटे सारे |
प्राणवायु के स्रोत,मित्र हैं पेड़ हमारे |
कह वसंत कर जोड़,बात बतलाई कवि ने |
दे कर निर्मम ताप,सीख यह दी है रवि ने |

वसंत जमशेदपुर

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