इलाहाबाद विश्वविद्यालय बिना परीक्षा के सामान्य प्रोन्नति के आधार पर बांटेगा पदक,बवाल
सौरभ सिंह सोमवंशी
प्रयागराज। कभी पूरब का आक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 8 नवम्बर को प्रस्तावित दीक्षांत समारोह
जिसमें शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान मुख्य अतिथि होंगे, उसमें दिये जाने वाले पदकों में मनमानी , नियमों की अनदेखी और मेरिट की खुलेआम अवहेलना होने के आरोप लग रहे हैं। कोरोना काल में हुई सामान्य प्रोन्नति को आधार बनाकर और आफलाइन परीक्षाओं की मेरिट को नगण्य मानकर मेडल बाँटने की तैयारी है। बात हम परास्नातक प्रथम वर्ष अर्थशास्त्र 2020 के लिए प्रदत्त प्रो० पी०डी० हजेला स्वर्ण पदक की कर रहे हैं।आइये बताते हैं किस तरह की मनमानी हुई है इलाहाबाद विश्वविद्यालय 2019-20 बैच के परास्नातक प्रथम वर्ष के छात्र अभिषेक कुमार सिंह ने प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में कुल 379 अंक प्राप्त किए जिसके आधार पर उनको कुल 8.8 सीजीपीए प्राप्त हुआ इसके अलावा दूसरे नंबर पर मानस मुकुल रहे जिनको अभिषेक से कम कुल 370 अंक प्राप्त हुए परंतु उन्हें भी 8.8 सीजीपीए प्राप्त हुआ दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा हो पाती तब तक कोरोना काल आ गया और परीक्षा नहीं हो पाई विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की गाइडलाइंस के अनुसार एक मानक के अनुसार छात्रों की प्रोन्नति होनी थी परंतु उस मानक के बारे में किसी को जानकारी नहीं है परिणाम यह हुआ कि अभिषेक कुमार सिंह को सामान्य प्रोन्नति के आधार पर दूसरे सेमेस्टर में 418 अंक के आधार पर 9 सीजीपीए प्राप्त हुआ और मानस मुकुल को 412 अंक के आधार पर 9.2 सीजीपीए प्राप्त हुआ किस आधार पर अभिषेक का अंक अधिक रहने के बावजूद उनको सीजीपीए में पिछाड़ दिया गया यह नहीं पता चल पाया क्योंकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने किस मानक के आधार पर सामान्य प्रोन्नति की यह अभी तक किसी के संज्ञान में नहीं है, ना ही इलाहाबाद विश्विद्यालय का कोई जिम्मेदार अधिकारी बताने को तैयार है। बात अंको की की जाए तो पूरे प्रथम वर्ष में अभिषेक कुमार सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 2019 बैच के अर्थशास्त्र प्रथम वर्ष में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र रहे हैं इसके बावजूद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के द्वारा 8 नवंबर को दी जाने वाली अर्थशास्त्र विभाग की एकल पदक तालिका में उनका नाम नहीं है जबकि सर्वाधिक अंक प्रथम व दुसरे सेमेस्टर में भी उन्होंने ही प्राप्त किए हैं ।
क्या यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के द्वारा अपने मेधावी छात्रों के साथ खुला अन्याय एवं अत्याचार नहीं है?
जब इसकी शिकायत अभिषेक कुमार सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक से की तो सबसे पहले तो 15 दिन तक उनकी शिकायत को नजरअंदाज किया गया उसके बाद मौखिक रूप से उनकी शिकायत का निस्तारण कर दिया गया और अभिषेक कुमार सिंह से बताया गया कि कोरोना काल में हुई सामान्य प्रोन्नति के आधार पर ही पदक वितरित किए जाएंगे बड़ा प्रश्न यह है कि उस आधार पर भी तो अभिषेक कुमार सिंह आगे हैं तो उनको नजरंदाज क्यों किया जा रहा है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के द्वारा दी जाने वाली मेरिट कम मींस स्कॉलरशिप जो 60% से अधिक अंक पाने वाले छात्रों को दी जाती है वह सिर्फ इसलिए नहीं दी गई क्योंकि करोना काल में परीक्षा नहीं हो पाई ।भारत सरकार के द्वारा ही संचालित सीबीएसई ने कोरोना काल के दौरान मेरिट लिस्ट इसलिए नहीं जारी की क्योंकि परीक्षा नहीं हो पाई थी और सामान्य प्रोन्नति की गई थी।
तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय जो पदक मेधावी छात्रों को देने जा रहा है उस पदक को देने का मानक उसने कोरोना काल की इलाहाबाद विश्वविद्यालय की सामान्य प्रोन्नति को क्यों बनाया, बड़ा प्रश्न यह है, क्यों कि ये अंक छात्रों के द्वारा बिना परीक्षा दिए ही प्राप्त किए गए हैं इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय की गाइडलाइंस के अनुसार पदक उन्हीं छात्रों को दिए जाते हैं जो परीक्षा पास करते हैं परंतु बड़ा प्रश्न यह है कि जब परीक्षा हुई ही नहीं तो छात्र ने कौन सी परीक्षा पास की? क्या बिना परीक्षा हुए सामान्य प्रोन्नति को आधार बनाकर पदक वितरित किया जा सकता है यह अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न है। यह न केवल प्रश्न है बल्कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रशासनिक तौर तरीकों पर भी बड़ा सवाल उठाने वाली घटना है।
संस्कृत और दर्शनशास्त्र में अंक के आधार पर चयन
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तौर तरीकों पर प्रश्न चिन्ह इसलिए उठ रहा है क्योंकि
संस्कृत और दर्शनशास्त्र में कुल प्राप्तांक को आधार बनाया गया और इस मानक को पदक तालिका में भलीभाँति लिखकर संस्कृत और दर्शनशास्त्र के पदक घोषित किये गये लेकिन अर्थशास्त्र में सारे मानकों को दरकिनार कर कोरोना काल में अघोषित मानकों पर हुई सामान्य प्रोन्नति को आधार बनाया गया उन मानकों को आधार बनाया गया जिसके बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं है यहां ग्रेडिंग के आधार पर पदक घोषित कर दिया गया यह गंभीर खामियों और अव्यवस्था का जीता जागता उदाहरण है।यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि मई 2021 में इविवि द्वारा घोषित पदकों को प्रदत्त किये जाने की सामान्य नियमावली के प्वाइंट 2 (जिसमें पदक की अहर्ता में विद्यार्थी का परीक्षा में उत्तीर्ण होना जरूरी बताया गया है और सामान्य प्रोन्नति का कोई जिक्र नहीं है जबकि इसके पूर्व ही सामान्य प्रोन्नति हो चुकी थी ) का हवाला दिया गया तो फिर यूजीसी के नियमों की दुहाई परीक्षा नियंत्रक ने दी, फिर इविवि के आर्डिनेंस-29 के क्लास (एफ) के सब सेक्शन (1) को अभिषेक ने आधार बनाया जिसमें स्पष्टतः यह लिखा है कि दीक्षांत में दिये जाने वाले पदकों के नियमों का निर्धारण सिर्फ और सिर्फ एकेडमिक काउंसिल, कार्य परिषद और कुलपति ही करेंगे, फिर भी परीक्षा नियंत्रक अपनी मनमानी पर अड़े रहे और अनेक गुजारिशों के बाद भी लिखित निस्तारण के लिए राजी नहीं हुये|
अब गंभीर प्रश्न यह है कि सर्वाधिक अंक मेरिट का आधार क्यों नहीं हैं? ग्रेडिंग अंकों द्वारा ही निर्धारित होती है न कि अंक ग्रेडिंग के द्वारा।
क्या बोली इलाहाबाद विश्वविद्यालय की जनसंपर्क अधिकारी जया कपूर?
इस मामले पर जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय की जनसंपर्क अधिकारी जया कपूर से बात की गई तो उन्होंने बताया कि परास्नातक में छात्रों को सीजीपीए के आधार पर अंक तालिका दी जाती है, उनको नंबरों के आधार पर अंकतालिका नहीं दी जाती है।यदि मेरिट में दो छात्रों के सीजीपीए बराबर हो उस परिस्थिति में छात्रों के अंक देखे जाते हैं और मेरिट तय की जाती है। यदि किसी छात्र कि सीजीपीए ज्यादा है तो अंक नहीं देखे जाते हैं। अर्थशास्त्र विभाग के संबंध में जिस छात्र को मेडल दिया जा रहा है उसका सीजीपीए शिकायत करने वाले छात्र अभिषेक कुमार सिंह से स्पष्ट रूप से ज्यादा है। सिर्फ जिन विभागों में सीजीपीए बराबर है वहां अंको का संज्ञान लिया गया है और वेबसाइट पर उनके अंक दिखाए गए हैं अन्यथा बाकी सभी परास्नातक पदक विजेताओं का नामांकन सीजीपीए के आधार पर किया गया है, बड़ा प्रश्न यह है कि जब परीक्षा ही नहीं हुई और सामान्य प्रोन्नति की गई तो उस सामान्य प्रोन्नति को कैसे पदक वितरण का आधार बनाया जा सकता है, हालांकि उसमें भी अंक के आधार पर अभिषेक कुमार सिंह आगे हैं। निश्चित रूप से कोरोना काल में की गई
सामान्य प्रोन्नति किसी भी परिस्थिति में मेरिट का आधार नहीं हो सकती अधिकतम वो एक परिस्थितिजन्य राहत ही हो सकती है आखिर एक ही संस्था में संस्कृत, दर्शनशास्त्र और अर्थशास्त्र के पदकों के नियम अलग-अलग कैसे? संस्कृत में विभाग के हस्तक्षेप पर आपत्तियों का निस्तारण किया गया तो अर्थशास्त्र में क्यों नहीं ? आखिर एक पदक के लिए इविवि अपने ही आर्डिनेंस और नियमावली को क्यों नज़रअंदाज़ कर रहा है? इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि अगर अपात्रों को पदक मिलेंगे तो क्या इविवि प्रशासन शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी को जवाबदेह होगा?
2019 में विश्वविद्यालय में 31 विषयों के पीजीएटी के टापर थे अभिषेक
अभिषेक कुमार सिंह शुरू से ही मेधावी छात्र रहे हैं 2016 में इन्होंने प्रयागराज के झूंसी स्थित सेंट्रल एकेडमी से इंटरमीडिएट किया उस समय पूरे प्रयागराज में अभिषेक सीबीएसई में दूसरे स्थान के टापर रहे थे। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए किया और 2019 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातक करने के लिए प्रवेश परीक्षा (पोस्ट ग्रेजुएशन एडमिशन टेस्ट) दिया, 31अलग-अलग विषयों की परास्नातक में प्रवेश के लिए हुई परीक्षा में अभिषेक ने कुल 31 विषयों की प्रवेश परीक्षा में टाप किया यानिकि अर्थशास्त्र में तो सर्वाधिक अंक प्राप्त किया ही साथ ही अन्य 30विषयों की प्रवेश परीक्षा में भी अभिषेक के ही सर्वाधिक अंक थे। इसके बाद 2019-20 के अर्थशास्त्र परास्नातक प्रथम सेमेस्टर में भी अभिषेक ने टाप किया, दूसरे सेमेस्टर में भी कोरोना के कारण परीक्षा भले नहीं हो पाई उसमें भी जब सामान्य प्रोन्नति की गई तो वह अंक के आधार पर टाप पर रहे और वह अंकों के आधार पर प्रथम वर्ष के टापर रहे।
अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष के टापर को ही मेडल दिया जाना है। परंतु अभिषेक को नजरअंदाज किया जाना समझ से परे है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय किस आधार पर मेडल दे रहा है लिखित आधार पर ये बताने को भी कोई तैयार नहीं है।